यूपी नगर निकाय चुनाव में हाईकोर्ट के आदेश के बाद बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव कराने को लेकर क्या कर सकती है सरकार,पढ़े पूरी खबर

उत्तर प्रदेश,

यूपी नगर निकाय चुनाव में हाईकोर्ट के आदेश के बाद बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव कराने को लेकर क्या कर सकती है सरकार,पढ़े पूरी खबर,

यूपी नगर निकाय चुनाव को लेकर हाईकोर्ट के फैसले से यूपी की राजनीति गरमा गई है,हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने ओबीसी आरक्षण पर सरकार के ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया है।

हाईकोर्ट के इस निर्णय से यूपी निकाय चुनाव को संपन्न कराने का रास्‍ता साफ हो गया है,अब देखने वाली बात होगी कि यूपी सरकार बगैर ओबीसी आरक्षण के निकाय चुनाव करवाती है या फिर हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देती है।

 

ऐसी जानकारी मिल रही है कि योगी सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है, आइए आपको बताते हैं कि हाईकोर्ट ने अपने 70 पेजों के फैसले में क्‍या खास बाते कहीं है..

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपने आदेश में कहा है कि नगर निकाय चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश शहरी विकास विभाग की तरफ से गत 5 दिसंबर को जारी अधिसूचना निरस्‍त की जाती है, यह निर्देश दिया जाता है कि जब तक राज्य सरकार की तरफ से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए ट्रिपल टेस्ट/शर्तों को हर तरह से पूरा नहीं किया जाता है, तब तक पिछड़े वर्ग के लिए कोई आरक्षण नहीं दिया जाएगा।

चूंकि नगर पालिकाओं का कार्यकाल या तो समाप्त हो गया है या समाप्त होने वाला है और ट्रिपल टेस्ट/शर्तों को पूरा करने की प्रक्रिया कठिन होने के कारण इसमें काफी समय लगने की संभावना है, यह निर्देश दिया जाता है कि राज्य सरकार/राज्य चुनाव आयोग चुनावों को तुरंत अधिसूचित करेगा। निर्वाचनों को अधिसूचित करते समय अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों को छोड़कर अध्यक्षों के पदों और कार्यालयों को सामान्य/खुली श्रेणी के लिए अधिसूचित किया जाएगा। चुनाव के लिए जारी होने वाली अधिसूचना में संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार महिलाओं के लिए आरक्षण शामिल होगा।

यदि नगरपालिका निकाय का कार्यकाल समाप्त हो जाता है, निर्वाचित निकाय के गठन तक ऐसे नगर निकाय के मामलों का संचालन संबंधित जिला मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति द्वारा किया जाएगा, जिसमें कार्यकारी अधिकारी / मुख्य कार्यकारी अधिकारी /नगर आयुक्त सदस्य होंगे। तीसरा सदस्य जिला मजिस्ट्रेट द्वारा नामित जिला स्तरीय अधिकारी होगा। हालांकि, उक्त समिति संबंधित नगर निकाय के केवल दिन-प्रतिदिन के कार्यों का निर्वहन करेगी और कोई बड़ा नीतिगत निर्णय नहीं लेगी।

हाईकोर्ट ने फैसले में कहा है कि हमने भारत के संविधान के अनुच्छेद 243-यू के प्रावधानों द्वारा निर्देशित होने वाले चुनावों को तुरंत अधिसूचित करने का निर्देश जारी किया है, जो कि एक नगर पालिका का गठन करने के लिए चुनाव की अवधि समाप्त होने से पहले पूरा किया जाएगा। हम समझते हैं कि समर्पित आयोग द्वारा सामग्रियों का संग्रह और मिलान एक भारी और समय लेने वाला कार्य है। हालांकि, भारत के संविधान के अनुच्छेद 243-यू में निहित संवैधानिक जनादेश के कारण चुनाव द्वारा निर्वाचित नगर निकायों के गठन में देरी नहीं की जा सकती है। इस प्रकार समाज के शासन के लोकतांत्रिक चरित्र को मजबूत करने के लिए यह आवश्यक है कि चुनाव जल्द से जल्द हों जो इंतजार नहीं कर सकते।

हम यह भी निर्देश देते हैं कि एक बार शहरी स्थानीय निकायों के चुनावों के संदर्भ में पिछड़े वर्ग के नागरिकों को आरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ के रूप में अनुभवजन्य अध्ययन करने की कवायद करने के लिए समर्पित आयोग का गठन किया जाता है। नागरिकों के पिछड़े वर्ग में शामिल करने के लिए ट्रांसजेंडरों की संख्या पर भी विचार किया जाएगा।

Ashok Kesarwani- Editor
Author: Ashok Kesarwani- Editor