कौशाम्बी में 728 वर्षों से हिन्दू मुस्लिम को एक दर पर मिलाने वाले ख्वाजा कड़क शाह के उर्स में गंगाजल को दिया जाता है महत्व

कौशाम्बी,

कौशाम्बी में 728 वर्षों से हिन्दू मुस्लिम को एक दर पर मिलाने वाले ख्वाजा कड़क शाह के उर्स में गंगाजल को दिया जाता है महत्व,

यूपी के कौशाम्बी जिले का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक उर्स मेला शुरू हो गया है,इस उर्स में गंगाजल को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है।कड़ा धाम माता शीतला के निकट स्थित ख़्वाजा सय्यद अहमद अब्दाल का यह उर्स पिछले 728 वर्षों से चल निरन्तर चला आ रहा है,जिसे कड़क शाह कड़ा के उर्स के नाम से जाना जाता है।
ख्वाजा कड़क शाह का नाम उनके सख्त मिजाज़ के कारण रखा गया है जो ईरान से भारत आये थे।ख्वाजा कड़क शाह के बारे में बताया जाता है कि उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी को सफल होने का मन्त्र दिया था और वह उनके दरबारी भी थे।

बताया जाता है कि किसी समय में कड़ा की धरती पर दाराशिकोह, राजा जयचंद्र, जलालुद्दीन और अन्य राजाओं ने राज किया था, उस समय दिल्ली के बाद कड़ा भी एक बड़ा सूबा हुवा करता था।कड़ा के उर्स में लाखों लोगों की भारी भीड़ जुटती है,जिसमें देश विदेश से जायरीनों का तांता लगा रहता है।एक सप्ताह चलने वाले इस उर्स मेले में तीन दिन तक मुख्य उर्स माना जाता है।

इस्लामी माह रजब के माह की दूसरी तारीख़ को उर्स का गागर उठाया जाता है, जिसमें मिटटी की गगरी में मुतवल्ली का दस्ता गंगा से पानी लाकर मजार की धुलाई करता है।अलग से लाये गए गंगा जल से ही शरबत बनाकर फातेहा भी किया जाता है, जिसे पाने वाले लोगों की होड़ लगी रहती है।रात में ख्वाज़ा साहब का कुल होता है।इस ऐतिहासिक ख्वाजा कड़क शाह की मजार के आसपास अनेकों अदभुत मजारें हैं ,जो उनके पालतू जानवरों से लेकर उनके साथ रहने वाले लोगों की बताई जाती है।ख़्वाजा कड़क शाह के समय का एक पेड़ भी यँहा पर अभी भी मौजूद है, जानकारी के मुताबिक जलती हुई लकड़ी गाड़ने से इस पेड़ की ईमली अभी भी आधी जली हुई फलती है।

 

Ashok Kesarwani- Editor
Author: Ashok Kesarwani- Editor