डीएम ने बदलते मौसम में गो-आश्रय स्थलों में संरक्षित निराश्रित गोवंश एवं पालतू पशुओं के खान-पान व रख-रखाव में विशेष ध्यान देने के दिए निर्देश

कौशाम्बी,

डीएम ने बदलते मौसम में गो-आश्रय स्थलों में संरक्षित निराश्रित गोवंश एवं पालतू पशुओं के खान-पान व रख-रखाव में विशेष ध्यान देने के दिए निर्देश,

यूपी के कौशाम्बी डीएम मधुसूदन हुल्गी ने शासन के निर्देशानुसार बदलते मौसम में गो-आश्रय स्थलों में संरक्षित निराश्रित गोवंश एवं पशुपालकों द्वारा पाले जा रहे पशुओं के खान-पान व रख-रखाव में विशेष ध्यान दिये जाने के निर्देश दियें हैं। अस्थाई गो-आश्रय स्थलों में संरक्षित गोवंशी तथा पशुपालकों द्वारा पाले जा रहें पशुओं के प्रबन्धन एवं खान-पान के सम्बन्ध में प्रमुख दिशा-निर्देश दिये गये है।

डीएम ने कहा कि सभी गो-आश्रय स्थलों में क्षमता के अनुरुप ही गोवंश संरक्षित किये जाय, यदि किसी गो-आश्रय स्थल में क्षमता से अधिक गोवंश हैं, तो उन्हें अन्य गो-आश्रय स्थलों में स्थानांतरित किया जाय अथवा गो-आश्रय स्थलों में अतिरिक्त शेड निर्माण कर क्षमता विस्तार किया जाय। गोवंश को आहार में दिये जा रहें चारे विशेषकर चरी तथा सूडान ग्रास की फसल में पानी की कमी के कारण हाइड्रोसाइनिक एसिड तथा नाइट्राइट विषाक्तता होने की प्रबल सम्भावना रहती है, चरी के खेत में समय-समय पर पर्याप्त सिंचाई की जाय। हरे चारे की फसल के खेत में यूरिया की टाप ड्रेसिंग की गयी हो या यूरिया डाला गया हो उस खेत के हरे चारे का उपयोग सिंचाई के उपरान्त कम से कम एक दिन बाद ही खिलाने में प्रयोग किया जाय।

उन्होंने कहा कि पशुओं को मात्र हरा चारा न खिलाया जाय, भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर, बरली द्वारा दी गई एडवाइजरी के अनुसार यह उचित होगा कि पशुओं के आहार में 20 प्रतिशत हरे चारे के साथ 80 प्रतिशत गेहूं के भूसे को मिलाकर खिलाया जाय, जिससे नाइट्राइट तथा हाइड्रोसाइनिक एसिड की विषाक्तता का प्रभाव न्यूनतम हो। हरे चारे की फसल को काटने के उपरान्त एक दिन खेत में छोडने के बाद ही कुटटी काटकर खिलाने के लिए प्रयोग में लाया जाय तथा हरे चारे को 6-8 घंटे (ऋतु अनुसार) से अधिक स्टोर न किया जाय। हरे चारे/भूसे से अनजान/ विशिष्ट प्रकार गंध आने पर प्रयोग न किया जाय। सूखे से प्रभावित अथवा हरे चारे की फसल जिसमें काफी समय से सिंचाई न की गई हो, ऐसे चारे को पर्याप्त सिंचाई करने के दो तीन दिन के उपरान्त ही पशुओं को काटकर खाने के लिए दिया जाय तथा हरे चारे को सूखे भूसे के साथ मिश्रित करके ही खिलाया जाय, जिसमें साइनाइड विषाक्तता का प्रभाव न पड़े।

समस्त उप मुख्य पशु चिकित्साधिकारी/ पशु चिकित्साधिकारियों द्वारा सूखे से प्रभावित अथवा सिंचाई रहित चरी के सेवन से पशुओं में सम्भावित सायनायड एवं नाईट्राईट प्वाइजनिंग के उपचार के लिए सोडियम थायोसल्फेट/मिथिलीन ब्लू तथा खेती में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न विषाक्तता के उपचार के लिए पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता सभी पशु चिकित्सालयों पर सुनिश्चित करा ली जाय। इसके लिए अपनी-अपनी मांग मुख्य पशुचिकित्साधिकारी को दे दी जाय ताकि तद्नुसार व्यवस्था के लिए कार्यवाही की जा सकें।

भीगे हुये तथा नमी युक्त पशुआहार एवं चारे व साइलेज में फफूँद का प्रकोप होने के कारण एफलाटाक्सिन की विषाक्तता होने की सम्भावना रहती है। फफूँद युक्त भूसा तथा पशु आहार गोवंशों/पशुओं को न दिया जाय। पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिये धान की पराली का प्रयोग, उसे खेतों से संग्रह कर गो-आश्रय स्थलों में रखा जाय तथा गो-शालाओं में चारे के उपयोग में लाये जाने वाले हरे चारे में पराली की उपयुक्त मात्रा में मिश्रित कर लिया जाय। मानक अनुसार धान की पराली की कुटटी बनाकर 25 प्रतिशत तक हरे चारे के साथ मिलाकर बैगनेला बीमारी होने का खतरा उत्पन्न हो जाता है। भीगी हुई पराली को किसी भी दशा में पशुओं को हरे चारे के रुप में न खिलाया जाय। पशुओं के पीने के लिए स्वच्छ जल की व्यवस्था की जाय, हमेशा ताजा जल ही पिलाया जाना उत्तम होगा।

पानी की चरही में चूना नियमित रुप से डाला जाय, जिससे गोवंश को स्वच्छ एवं जीवाणु रहित जल के साथ कैल्शियम की भी पूर्ति हो सकें तथा पानी की चरही में शैवाल (काई) न पनपने पाये। वर्षा काल के पश्चात गो-आश्रय स्थलों में जल भराव की समस्या का निराकरण मिटटी की पटाई समतलीकरण तथा जल निकासी के उपाय करके पूर्ण कर लिया जाय (भण्डारित भूसे को भीगने से बचाने के पर्याप्त उपाय किया जाना आवश्यक है। सम्बन्धित गो आश्रय स्थल के संचालक तथा ग्राम पंचायत सचिव द्वारा गोवंशों को दिये जा रहे हरे चारे व अन्य आहार की गुणवत्ता जांच प्रतिदिन की जायें एवं इस सम्बन्ध में प्रभारी उप मुख्य पशु चिकित्साधिकारी/पशु चिकित्साधिकारी से भी विचार विमर्श किया जाना आवश्यक है।

पशुओं/गोवशों को प्रत्येक 03 माह पर कृमिनाशक दवा पशु चिकित्साधिकारी की सलाह अनुसार एवं देखरेख में निर्धारित खुराक देकर कराया जाय। शेड तथा पानी की चरही में नियमित रुप से सफाई व्यवस्था व प्रक्रिया सुनिश्वित करायी जाय। गोशाला/गो-आश्रय स्थल में विद्युत् उपकरण अथवा विद्युत तार गोवंशों की पहुंच से दूर रहें, जिससे विद्युत दुर्घटना से बचाव हो सके। टीकाकरण से वचित/बचे हुये गोवंशों को गलाघोटू (एच०एस०), लंगडिया (बी०क्यू०) तथा अन्य संक्रामक बीमारियों से बचाव के लिए टीकाकरण प्राथमिकता पर पशुचिकित्साधिकारियों द्वारा करा लिया जाय।

सभी गो आश्रय स्थलों पर रात्रिकालीन गो-सेवक/चौकीदार नियुक्त किया जाय। मुख्य पशुचिकित्साधिकारी एवं समस्त उप मुख्य पशुचिकित्साधिकारियों/पशुचिकित्साधिकारियों सहित गो-आश्रय स्थल से जुड़े समस्त अधिकारी अपने मुख्यालय पर रात्रि निवास करना सुनिश्चित करें। स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरुप मौसमी बीमारियों से बचाव के लिए समुचित जानकारी पशुपालकों को उपलब्ध करायी जाय तथा गो-आश्रय स्थलों में बीमारियों का टीकाकरण अवश्य कराया जाय।

 

Ashok Kesarwani- Editor
Author: Ashok Kesarwani- Editor