पैर पसारता नक्सलवाद और नक्सलवादी हमलें हमारे लिए चुनौती पूर्ण,नक्सलवाद की समस्या पर आखिर कब लगेगी लगाम

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पैर पसारता नक्सलवाद और नक्सलवादी हमलें हमारे लिए चुनौती पूर्ण,नक्सलवाद की समस्या पर आखिर कब लगेगी लगाम:विनोद जनवादी

न्यूज ऑफ इंडिया (एजेंसी)

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में इग्यारह जवानों की शहादत से पूरें देश में नक्सलवाद को लेकर एक लम्बीं बहस भलें न छिडे़ लेकिन एक बात साफ हैं कि पूरें देश में नक्सलियों के हमलें से शहीद जवानों को लेकर आंखे नम जरुर हैं। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने जिनको मारा है वह जिला पुलिस बल के जवान थे। जिला पुलिस बल में ज्यादातर जवान बस्तर के आदिवासी अंचलों से हैं। शहीद हुए 11जवानों में से 10 आदिवासी हैं। यह बेहद कायराना और शर्मनाक हमला है। इस तरह से जवानों को टारगेट करके हमला करना नक्सलियों की तुच्छ मानसिकता दिखाई देती हैं।नक्सलवाद की जड़ें धीरे धीरे सूख रहीं हैं लेकिन इनकों पालने पोसने के लिए कुछ अपना जमीर गिरवी रख देते हैं ।

ऐसे ही नक्सलियों को बढावा देने वाले सरपरस्त रहें जिनके ऊपर 2020 आरोप भी लगा था और गिरफ्तारी भी हुई थी। दंतेवाड़ा के ही भाजपा जिला उपाध्यक्ष जगत पुजारी को नक्सलियों के साथ संबंधों के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।पुजारी पिछले एक दशक से माओवादियों के लिए एक आपूर्तिकर्ता के रूप में काम कर रहा था, उन्हें “कपड़े, जूते, भोजन और कभी-कभी हथियार और गोला-बारूद जैसी विभिन्न सामग्री” प्रदान करते रहें है, जिसको लेकर इन्हें गिरफ्तार भी किया गया था।

ऐसे में सवाल यह हैं कि किसी बड़ी साजिश का नतीजा है? छत्तीसगढ़ के ही बीजापुर सुकमा में सुरक्षाबलों पर हुए नक्सली हमले से तब भी पूरा देश शोक की लहर में डूबा था।गृहमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री ने इस हमले का बदला लेने और नक्सलियों को सबक सिखाने की बात कही थीं। पूर्वी-मध्य भारत का ये राज्य अब तक कई नक्सली हमलों से दहल चुका है इन्हीं में से एक दंतेवाड़ा में अप्रैल 2010 में एक पुलिसकर्मी और CRPF के 75 जवान शहीद हो गए थें। आज हर एक व्यक्ति के जेहन में आतंकवाद और नक्सलवाद को लेकर सवाल उत्पन्न होते रहते हैं क्या इन लोगों से निपटने के लिए राज्य और केंद्र कोई कडी़ नीति तैयार कर रहीं है या उसपर विमर्श ही काफी है? आखिर कहां चूक हो रही है जो इस तरह के हमले आए दिन सामने आ जाते हैं। क्या इसपर केंद्र और राज्य सरकारों ने मंथन एंव चिंतन किया।

नक्सली हमलों पर कुछ हद तक लगाम लगाई जा सकती हैं ऐसा भी नहीं हैं सरकार के पास तमाम ऐसे तरीके हैं जिससे इनकी कमर तोडीं जा सकती हैं खैर मेरा मानना हैं कि चुनी हुई सरकार जल्द बाजी में इस बात की घोषणा की जल्दबाज़ी रहती है कि नक्सली समस्या को तकरीबन खत्म कर दिया जायेगा। शायद घोषणा करने की जरूरत नहीं सरकारें अपनी जांच एजेंसियों को लगाकर एक ऐसे आपरेशन को अंजाम दे सकती हैं कि जो पूरा होने के बाद पता चलें। एक दूसरे नजरिए से देखे तो नक्सलवाद के खिलाफ हो रही तमाम कोशिशों में से सबसे कारगर कोशिश विकास की है। छत्तीसगढ़ के प्रभावित इलाकों में केंद्र सरकार की तरफ से विकास कार्यों के लिए बड़ी रकम भेजी जाती है जिसमें स्कूल, नागरिक सेवाएं, बिजली, पानी और सड़क शामिल हैं लेकिन जिन अधिकारियों पर ये ज़िम्मेदारी है उनके भ्रष्टाचार के चलते आम लोगों तक ये सहूलियतें शायद ही नहीं पहुंच पाती। लेकिन इसको नक्सलवाद का प्रमुख कारण नहीं माना जा सकता हैं।

आतंकवाद और नक्सलवाद भारत के लिए लंबे समय से चुनौती रही है। ये समस्या सिर्फ छत्तीसगढ़ की नहीं बल्कि देश के 8 राज्यों के 60 ज़िलों की है। इनमें ओडिशा के 5, झारखंड के 14, बिहार के 5, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के 10, मध्यप्रदेश के 8, महाराष्ट्र के 2 और बंगाल के 8 ज़िले आते हैं। ज़ाहिर है इस समस्या पर सभी राज्यों को मिलकर एक सख़्त नीति बनाने की ज़रूरत है ताकि व्यापक तरीके से नक्सलवाद के खिलाफ देश की नीति को परिभाषित किया जा सके। जबकि हकीकत ये है कि राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर इस चुनौती से लड़ती तो जरूर रहीं हैं लेकिन इसके तह तक नहीं पहुच पा रहीं हैं यह तभी संभव हैं जब केंद्र और राज्य सरकारें एक जुट होकर नक्सलवाद के खातमें की तरफ बढे़गी।

 

Ashok Kesarwani- Editor
Author: Ashok Kesarwani- Editor