ब्राह्मणों ने गंगा स्नान घाट पर मनाया हिंदुओं का प्रमुख त्योहार श्रावणी पर्व,जय मां गायत्री,जय मां सरस्वती, जय सप्तऋषि की जय जय जयकार से गुंजायमान हुआ क्षेत्र

कौशाम्बी,

ब्राह्मणों ने गंगा स्नान घाट पर मनाया हिंदुओं का प्रमुख त्योहार श्रावणी पर्व,जय मां गायत्री,जय मां सरस्वती, जय सप्तऋषि की जय जय जयकार से गुंजायमान हुआ क्षेत्र,

यूपी के कौशाम्बी जिले में ब्राह्मणों ने गंगा स्नान घाट पर हिंदुओं का प्रमुख त्योहार श्रावणी पर्व को मनाया,इस दौरान जय मां गायत्री,जय मां सरस्वती, जय सप्तऋषि की जय जय जयकार से क्षेत्र गुंजायमान रहा।

हिंदुओ के चार प्रमुख त्योहार में श्रावणी पर्व को मुख्य रूप से ब्राह्मणों का माना गया है,इस दिन ब्राह्मण समुदाय पवित्र नदी के तट पर एकत्र होकर विगत में अपने द्वारा जाने अंजाने में किए गए पापों का प्रायश्चित एवम मां गायत्री, मां अरुंधती सहित अन्य देवताओ से क्षमा प्रार्थना करते है। तत्पश्चात गो दुग्ध, गो दही, शहद मृतिका, भस्म स्नान कर शुद्धिकरण करते है।तर्पण कर सप्तऋषि की पूजा कर वर्ष भर पहनने के लिए यज्ञोपवीत की पूजा करते है। मां सरस्वती, मां गायत्री और मां अरुंधती की पूजा कर आगामी वर्ष के लिए दिव्य शक्ति अर्जित करते है।

इसी क्रम में शनिवार को संदीपन गंगा स्नान घाट पर श्रावणी उपाक्रर्म संपन्न हुआ। कार्यक्रम में आचार्य की भूमिका में अवकाश प्राप्त प्राचार्य संस्कृत महाविद्यालय पंडित मुरलीधर मिश्र, पंडित रविंद्र शुक्ल दोनो शामिल रहे l

श्रावणी उपाकर्म उत्सव में वैदिक विधि से हेमादिप्राक्त, प्रायश्चित संकल्प, सूर्याराधन, दसविधि स्नान, तर्पण, सूर्योपस्थान, यज्ञोपवीत धारण, प्राणायाम, अग्निहोत्र व ऋषि पूजन किया जाता है। शास्त्रों में श्रावणी को द्विज जाति का अधिकार व कर्तव्य बताया और कहा गया कि वेदपाठी ब्राह्मणों को तो इस कर्म को किसी भी स्थिति में नहीं त्यागना चाहिए।

प्रायश्चित्त संकल्प : इसमें हेमाद्रि स्नान संकल्प, गुरु के सान्निध्य में ब्रह्मचारी गोदुग्ध, दही, घृत, गोबर और गोमूत्र तथा पवित्र कुशा से स्नानकर वर्षभर में जाने-अनजाने में हुए पापकर्मों का प्रायश्चित्त कर जीवन को सकारात्मकता दिशा देते हैं। स्नान के बाद ऋषिपूजन, सूर्योपस्थान एवं यज्ञोपवीत पूजन करने के विधान है।

संस्कार : उपरोक्त कार्य के बाद नवीन यज्ञोपवीत या जनेऊ धारण करना अर्थात आत्म संयम का संस्कार होना माना जाता है। इस संस्कार से व्यक्ति का दूसरा जन्म हुआ माना जाता है। इसका अर्थ यह है कि जो व्यक्ति आत्म संयमी है, वही संस्कार से दूसरा जन्म पाता है और द्विज कहलाता है।

स्वाध्याय : उपाकर्म का तीसरा पक्ष स्वाध्याय का है, इसकी शुरुआत सावित्री, ब्रह्मा, श्रद्धा, मेधा, प्रज्ञा, स्मृति, सदसस्पति, अनुमति, छंद और ऋषि को घृत की आहुति से होती है। जौ के आटे में दही मिलाकर ऋग्वेद के मंत्रों से आहुतियां दी जाती हैं। इस यज्ञ के बाद वेद-वेदांग का अध्ययन आरंभ होता है। इस प्रकार वैदिक परंपरा में वैदिक शिक्षा साढ़े पांच या साढ़े छह मास तक चलती है।वर्तमान समय में वैदिक शिक्षा या गुरुकुल नहीं रहे हैं तो प्रतीक रूप में यह स्वाध्याय किया जाता है। मनोवैज्ञानिक-आध्यात्मिक प्रक्रिया है।

श्रावणी पर्व कार्यकर्म में पूर्व सुचना निदेशक रहे दिनेश गर्ग, राम प्रकाश मिश्रा अधिवक्ता, प्रमोद कुमार पांडेय, विष्णु प्रकाश मिश्रा , दिनेश शांडिल्य, सत्यम मिश्रा सहित सैकड़ों ब्राह्मण मौजूद रहे।

Ashok Kesarwani- Editor
Author: Ashok Kesarwani- Editor