कौशाम्बी,
डीएम के अभिनव पहल से जलमग्न रहने वाले 92.391 हेक्टेयर भूमि पर होने लगी खेती,विलुप्त हो चुके नाले का जीर्णोद्धार कर कराई गई जल निकासी,
यूपी के कौशाम्बी डीएम मधुसूदन हुल्गी के कुशल मार्ग-निर्देशन में जनपद में जनसहभागिता के माध्यम से एक अभिनव पहल कर किसानों के हित में उल्लेखनीय कार्य किया गया है।
अलवारा झील के पास भूमिधरी खेती की जमीन पर वर्षा के कारण अत्यधिक जलभराव की स्थिति बन जाने से खेती की जमीन जलमग्न होने के कारण फसल का उत्पादन नहीं हो पा रहा था। इन भूमिधरी खेतों के किसान अत्यंत चिंतित रहते थे। इन किसानों ने आपस में विचार-विमर्श कर जलभराव की समस्या के समाधान के लिए अपने स्तर से प्रयास करना शुरू कर दिया। प्रयास की इसी कड़ी में इन किसानों ने डीएम से मिलकर खेती न कर पाने की समस्या से अवगत कराया।
डीएम ने किसानों की इस समस्या को गंभीरता से सुनते कहा कि इस समस्या का समाधान क्या हो सकता है, जिस पर किसानों द्वारा अवगत कराया गया कि कुछ वर्षो पूर्व एक नाला हुआ करता था, इस नाले से ही वर्षा के समय हुए अत्यधिक जलभराव का पानी बहकर यमुना नदी में चला जाता था, परंतु यह अब पट गया है या यह कहे कि अब नाला अस्तित्व में ही नहीं, तो जल निकासी कैसे होगा। अगर इस नाले का जीर्णोद्धार कर दिया जाय तो हम किसान पुनः खेती कर पाएंगे।
डीएम ने तत्काल संज्ञान में लेते हुए राजस्व विभाग,ग्राम विकास विभाग,सिंचाई विभाग एवं वन विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक की तथा अधिकारियों को मौके पर जाकर सर्वे कर विस्तृत रिपोर्ट उपलब्ध कराने के निर्देश दिए। अधिकारियों द्वारा सर्वे कर विस्तृत रिपोर्ट जिलाधिकारी को उपलब्ध कराई गई।
डीएम ने अधिकारियों से विचार-विमर्श कर यह निर्णय लिया कि नाला जीर्णोद्धार, मनरेगा एवं जनसहभागिता के माध्यम से बिना सरकार से अतिरिक्त धनराशि की मांग कर इस कार्य को पूर्ण किया जाएगा। जिला प्रशासन के साथ कदमताल मिलाकर प्रथम दिन से ही जलमग्न खेतों की समस्या से प्रभावित किसानों ने श्रमदान करना शुरू कर दिया। जब समाज के अन्य गणमान्य नागरिकों का सहयोग मिला तो कारवां और तेजी से आगे बढ़ चला।
जनसहभागिता के माध्यम से 1.5 मीटर गहरा, 03 मीटर चौड़ा तथा लगभग 03 किलोमीटर लंबा नाला का जीर्णोद्धार कार्य पूर्ण हो गया। नाला जीर्णोद्धार का प्रत्यक्ष लाभ पौर काशीरामपुर, शाहपुर उपहार, अलवारा एवं देरहा ग्राम के 1480 कृषकों को मिला मिल रहा है, जो लगभग 92.391 हेक्टेयर भूमि पर पुनः फसल का उत्पादन करने लगे है, जिससे किसान आर्थिक सक्षम होने के साथ ही देश के विकास में भी योगदान कर रहे है। अगर अर्थव्यवस्था के रूप में देखा जाए तो 92.391 हेक्टेयर भूमि पर फसल का मानकीय मान निम्नानुसार है-
गेहूं की फसल की लगभग कुल उपज 3880 कुंतल,जिसका कुल मूल्य-94 लाख 10 हजार 023 रुपए।
धान की फसल की लगभग कुल उपज 3141 कुंतल,जिसका कुल मूल्य-07 करोड़ 22 लाख 24हजार 976 रुपए होगा।
डीएम ने कहा कि इस पहल से जलमग्न रहने वाली लगभग 92.391 हेक्टेयर कृषि भूमि से जल निकासी होने से न केवल कृषि योग्य भूमि का पुनरुद्धार हुआ, बल्कि नए सिरे से कृषि गतिविधि और ग्रामीण आर्थिक पुनरुद्धार का मार्ग भी प्रशस्त हुआ। वर्षों में पहली बार, जहाँ कभी फसलें नहीं उग पाती थीं, वहाँ आशा की किरणें दिखाई दे रही हैं। इस परियोजना का एक सबसे महत्वपूर्ण दीर्घकालिक लाभ यह है कि यह जमीनी स्तर पर प्राकृतिक और प्रशासनिक संसाधनों का अनुकूलन करने के साथ ही साथ पारिस्थितिक पुनर्स्थापन में भी योगदान देंगी।