कौशाम्बी,
विकसित कौशाम्बी अभियान का धरातल पर दिखने लगा सकारात्मक परिणाम,डीएम मधुसूदन हुल्गी की पहल लाई रंग,
यूपी के कौशाम्बी डीएम मधुसूदन हुल्गी के कुशल मार्गनिर्देशन में जनपद में संचालित “विकसित कौशाम्बी अभियान“ तीव्र गति से अपने निर्धारित उद्देश्यों-यथा सभी बच्चों को गुणवत्ता परक शिक्षा, सभी लोगों को पोषण एवं सभी लोगों को स्वास्थ्य सुविधा, विशेष कर वंचित लोगों को त्वरित गति से समयबद्ध रूप से प्राप्त हो, इस दिशा में निरंतर अग्रसर हैं।
“विकसित कौशाम्बी अभियान“ के अन्तर्गत पोषण, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, नवजात व मातृ मृत्यु दर में कमी एवं आमजन तक स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ त्वरित एवं सुलभ मिलने का सकारात्मक परिणाम धरातल पर दिखाई देने लगा है। यह इस बात का गौरवशाली उदाहरण है कि जब नागरिक समाज, प्रशासनिक व्यवस्था और प्रभावित समुदाय एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करते हैं, तो स्थायी और सार्थक बदलाव आते हैं। समुदाय-सरकारी सहयोग के माध्यम से जनपद ने स्वास्थ्य क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियाँ हासिल की हैं।
डीएम मधुसूदन हुल्गी ने कहा, “इसका उद्देश्य, अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं, अधिकारियों, नागरिक समाज और समुदायों, इन सभी के बीच व्यवस्था में विश्वास पैदा करना था। स्वास्थ्य, शिक्षा एवं पोषण से जुडी आधारभूत सुविधाओं को सुदृढ़ कर जनपद में आमजन तक स्वास्थ्य सेवाओं की सुगमतापूर्वक पहुॅच, विद्यालयों में बच्चों की उपस्थिति बढाना व उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना एवं जनपद में कुपोषण को समाप्त कर सभी बच्चों, गर्भवती व धात्री महिलायें सुपोषित हो, इस दिशा में निरन्तर कार्य करने का प्रयास किया जा रहा है, जिसके सकारात्मक परिणाम धरातल पर दिखाई दे रहें है, इन सभी कार्यो का प्रत्यक्ष लाभ जरूरतमन्द लोगों को मिल रहा है।‘‘
परिणाम जो धरातल पर दिख रहे-
कौशाम्बी जनपद में संस्थागत प्रसव केवल 10 महीनों (जून,2024 से अब तक) के भीतर 44 प्रतिशत से बढ़कर 68 प्रतिशत हो गए; मातृ मृत्यु दर में लगभग 90 प्रतिशत और शिशु मृत्यु दर में 52 प्रतिशत की कमी आई; और इसी अवधि में गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या 550 से घटकर 114 हो गई-परिणाम बहुत कुछ कहते हैं। यह परियोजनाओं के एक अस्थायी ढर्रे से कहीं आगे निकल गया है। यह बहु-स्तरीय सहयोग का एक सहज मॉडल था। शीर्ष स्तर पर, सरकारी एजेंसियों, ब्त्ल् (चाइल्ड राइट एण्ड यू) जैसे नागरिक समाज समूहों और संस्था ओ( दोआबा विकास एवं उत्थान समिति) और अरमान जैसे जमीनी स्तर के साझेदारों ने एक सुसंगत, बहु-क्षेत्रीय रणनीति तैयार की और उसे लागू किया। जमीनी स्तर पर, एएनएम, आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की टीम ने तालमेल बनाकर कार्य किया। जोखिमों को जल्दी पहचानना, परिवारों का समर्थन करना और समय पर चिकित्सा सहायता सुनिश्चित करना। स्वयं सहायता समूहों, ग्राम प्रधानों और परिवार के पुरुष सदस्यों की भागीदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण थी। गर्भवती महिलायें और कुपोषित बच्चों के देखभाल में तेज़ी आई। कुपोषित बच्चों का व्यवस्थित रूप से पुनर्वास किया गया। प्रसव पूर्व देखभाल और टीकाकरण जागरूकता सामुदायिक मानदण्ड बन गई है।
इन बदलावों को कैसे संभव बनाया गया..
गहन रूप से देखने पर, कौशाम्बी को बढ़त दिलाने वाली तीन मुख्य रणनीतियाँ थी। पहली-विभागीय पहल ने अलगाव के माहौल को तोड़ा। स्वास्थ्य, एकीकृत बाल विकास सेवाएँ, शिक्षा, कृषि, ग्रामीण विकास जैसे विभागों ने मिलकर योजना बनाना शुरू किया, और नोडल अधिकारी विषयगत समूहों की देखरेख करते रहे। एक मज़बूत निगरानी प्रणाली ने वास्तविक समय पर निगरानी और सुधार को संभव बनाया। ’दूसरा,-व्यवहार परिवर्तन हस्तक्षेपों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सामाजिक एवं व्यवहार परिवर्तन केंद्र के सहयोग से, ज़िला और ब्लॉक अधिकारियों ने लक्षित प्रशिक्षण प्राप्त किया, जिसे क्षेत्र-स्तरीय कार्यकर्ताओं तक पहुँचाने के लिए डिज़ाइन किया गया था। अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं ने सामुदायिक मानसिकता को बदलने के लिए कौशल और आत्मविश्वास दोनों प्राप्त किया।
प्रशिक्षण के बाद एक आंगनवाड़ी कार्यकत्री का अनुभव..
मंझनपुर की एक आंगनवाड़ी कार्यकत्री प्रीति ने गर्व से मुस्कुराते हुए कहा, “प्रशिक्षण के बाद, मैंने विभाग के पोर्टल पर इण्ट्री करना तो सीखा ही साथ ही अब मैं माताओं को पोषण और बच्चों के स्वास्थ्य व पोषण को सुरक्षित रखने के सर्वोत्तम तरीकों के बारे में समझाती हूँ और वे सुनती हैं।
तीसरा-विकास कार्यों को तकनीक के साथ जोड़ना, जो स्थानीय प्रशासन पहल का एक हिस्सा है। यहाँ, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के संपर्क ने क्षमता और जवाबदेही को बढ़ाया। 90 प्रतिशत से अधिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को मोबाइल-आधारित शिक्षण प्रबंधन प्रणाली के माध्यम से प्रशिक्षित किया गया। ए.एन.एम. को एक नैदानिक सहायता, प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से समय पर मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। साथ ही, सामुदायिक संपर्क, अभिभावक-शिक्षक बैठकों से लेकर ग्राम प्रधान सत्रों तक ने फीडबैक लूप बनाए, कुल मिलाकर, जो सामने आया, वह एक सरकारी पहल से कहीं आगे था। यह सभी के स्वामित्व वाला एक सामूहिक आंदोलन था।
स्वास्थ्य से परे, एक विकास योजना..
जनपद में स्वास्थ्य क्षेत्र में सफलता का प्रभाव अन्यत्र भी महसूस किया जा सकता है। 240 से ज़्यादा विद्यालयों में डिजिटल क्लास संचालित होने और अभिभावकों की निरंतर भागीदारी की बदौलत स्कूलों में उपस्थिति 54 प्रतिशत से बढ़कर 78 प्रतिशत हो गई। किसानों ने उर्वरक का नियंत्रित उपयोग करना शुरू किया, मृदा स्वास्थ्य संबंधी सलाह का पालन करके बेहतर उपज प्राप्त कर रहें है। महिलाओं ने बैंक खाते खोले, सरकारी योजनाओं में नामांकन कराया और वित्तीय निर्णयों में भाग लेना शुरू किया। व्यवहार परिवर्तन, डिजिटल उपकरण और स्थानीय जवाबदेही ने मिलकर एक ऐसे परिवर्तन को जन्म दिया, जो स्वास्थ्य से परे भी फैला।
जब उद्देश्य और साझेदारी का मेल होता है..
कौशाम्बी अनुकरण के लिए एक योजना प्रस्तुत करता है। यह इस धारणा को चुनौती देता है कि संरचनात्मक परिवर्तन के लिए बड़े बजट की आवश्यकता होती है, इसके बजाय, यह साबित करता है कि जब नागरिक समाज, जनपद प्रशासन और समुदाय एक साथ चलते हैं, तो वे संभावनाओं को नए सिरे से परिभाषित कर सकते हैं। यह मॉडल इसलिए कारगर है,क्योंकि यह सुनता है, तत्परता से कार्य करता है, करुणा के साथ सहयोग करता है और अंततः उन लोगों द्वारा अपनाया जाता है, जिनके लिए यह मॉडल है।
कौशाम्बी आज न केवल सुशासन का जीवंत प्रमाण है, बल्कि सामूहिक सफलता की एक मिसाल भी..
स्थायी और सार्थक परिवर्तन, तब सामने आता है, जब नागरिक समाज, प्रशासनिक संरचना और प्रभावित समुदाय एक साथ मिलकर काम करते हैं और परिवर्तन को अपनाते हैं। कभी उच्च कुपोषण और मातृ मृत्यु दर से ग्रस्त कौशाम्बी ने समुदाय-सरकारी सहयोग के माध्यम से स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियाँ हासिल की हैं।