जनसंघ के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि पर आयोजित हुई संगोष्ठी

कौशाम्बी

डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव फेडरेशन डी.सी.एफ.के चेयरमैन चन्द्र दत्त शुक्ल ने एकात्म मानववाद के प्रणेता,एवं जनसंघ के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि पर आयोजित संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कहा कि शसक्त,स्वाभिमानी,समर्थ और वैभवशाली भारत के निर्माण का सपना एकात्म मानववाद के सिद्धांतों का अनुसरण कर ही साकार किया जा सकता है । उन्होंने कहा कि जिन मूल्यों, सिद्धान्तों,के लिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने अपना जीवन मातृभूमि की अहर्निश सेवा करते हुए बलिदान किया उन्हें जिंदा रखना और उनका अनुसरण करते हुए देश के लिये अपना सर्वश्रेष्ठ देने के समर्पण का संकल्प ही उनके प्रति हमारी श्रद्धावनत श्रद्धांजलि होगी ।चंद्रदत्त शुक्ल ने कहा कि सुविधाओं में पलकर कोई भी सफलता पा सकता है, पर अभावों के बीच रहकर शिखरों को छूना बहुत कठिन है। 25 सितम्बर, 1916 को जयपुर से अजमेर मार्ग पर स्थित ग्राम धनकिया में अपने नाना पंडित चुन्नीलाल शुक्ल के घर जन्मे पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऐसी ही विभूति थे।उन्होंने बताया कि दीनदयाल जी के पिता भगवती प्रसाद ग्राम नगला चन्द्रभान, जिला मथुरा, उत्तर प्रदेश के निवासी थे। तीन वर्ष की अवस्था में ही उनके पिताजी का तथा आठ वर्ष की अवस्था में माताजी का देहान्त हो गया। अतः दीनदयाल का पालन रेलवे में कार्यरत उनके मामा ने किया। ये सदा प्रथम श्रेणी में ही उत्तीर्ण होते थे। कक्षा आठ में उन्होंने अलवर बोर्ड,मैट्रिक में अजमेर बोर्ड तथा इण्टर में पिलानी में सर्वाधिक अंक पाये थे।

पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन पर विस्तार से चर्चा करते हुए श्री शुक्ल ने कहा कि 14 वर्ष की आयु में इनके छोटे भाई शिवदयाल का देहान्त हो गया।1939 में उन्होंने सनातन धर्म कालिज, कानपुर से प्रथम श्रेणी में बी.ए. पास किया। यहीं उनका सम्पर्क संघ के उत्तर प्रदेश के प्रचारक श्री भाऊराव देवरस से हुआ। इसके बाद वे संघ की ओर खिंचते चले गये। एम.ए. करने के लिए वे आगरा आये; पर घरेलू परिस्थितियों के कारण एम.ए. पूरा नहीं कर पाये। प्रयाग से इन्होंने एल.टी की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। संघ के तृतीय वर्ष की बौद्धिक परीक्षा में उन्हें पूरे देश में प्रथम स्थान मिला था।अपनी मामी के आग्रह पर उन्होंने प्रशासनिक सेवा की परीक्षा दी। उसमें भी वे प्रथम रहे; पर तब तक वे नौकरी और गृहस्थी के बन्धन से मुक्त रहकर संघ को सर्वस्व समर्पण करने का मन बना चुके थे। इससे इनका पालन-पोषण करने वाले मामा जी को बहुत कष्ट हुआ। इस पर दीनदयाल जी ने उन्हें एक पत्र लिखकर क्षमा माँगी। वह पत्र ऐतिहासिक महत्त्व का है। 1942 से उनका प्रचारक जीवन गोला गोकर्णनाथ (लखीमपुर, उ.प्र.) से प्रारम्भ हुआ। 1947 में वे उत्तर प्रदेश के सहप्रान्त प्रचारक बनाये गये। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन परिचय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 1951 में डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने नेहरू जी की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियों के विरोध में केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल छोड़ दिया। वे राष्ट्रीय विचारों वाले एक नये राजनीतिक दल का गठन करना चाहते थे। उन्होंने संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरुजी से सम्पर्क किया। गुरुजी ने दीनदयाल जी को उनका सहयोग करने को कहा। इस प्रकार ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना हुई। दीनदयाल जी प्रारम्भ में उसके संगठन मन्त्री और फिर महामन्त्री बनाये गये।
1953 के कश्मीर सत्याग्रह में डा. मुखर्जी की रहस्यपूर्ण परिस्थितियों में मृत्यु के बाद जनसंघ की पूरी जिम्मेदारी दीनदयाल जी पर आ गयी। वे एक कुशल संगठक, वक्ता, लेखक, पत्रकार और चिन्तक भी थे। लखनऊ में राष्ट्रधर्म प्रकाशन की स्थापना उन्होंने ही की थी। एकात्म मानववाद के नाम से उन्होंने नया आर्थिक एवं सामाजिक चिन्तन दिया, जो साम्यवाद और पूँजीवाद की विसंगतियों से ऊपर उठकर देश को सही दिशा दिखाने में सक्षम है।
उनके नेतृत्व में जनसंघ नित नये क्षेत्रों में पैर जमाने लगा। 1967 में कालीकट अधिवेशन में वे सर्वसम्मति से अध्यक्ष बनायेे गये। चारों ओर जनसंघ और पंडित दीनदयाल जी के नाम की धूम मच गयी। यह देखकर विरोधियों के दिल फटने लगे। 11 फरवरी, 1968 को वे लखनऊ से पटना जा रहे थे। रास्ते में किसी ने उनकी हत्या कर मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर लाश नीचे फेंक दी। इस प्रकार अत्यन्त रहस्यपूर्ण परिस्थिति में एक मनीषी का निधन हो गया।चंद्रदत्त शुक्ल ने कहा कि देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भव्य भारत के निर्माण का सपना साकार करने के लिए हमें प्राण,प्रण और समर्पण के साथ जुटना होगा । संगोष्ठी में भाजपा जिला महामंत्री महिला प्रकोष्ठ ज्योति गुप्ता, मुकेश शुक्ल,अमित कुमार,अखिलेश विश्वकर्मा,सहित अनेक प्रबुद्धजन मौजूद रहे ।

Ashok Kesarwani- Editor
Author: Ashok Kesarwani- Editor